संक्रमण काल से गुज़रते राजनीतिक माहौल में अहम होंगे नतीजे

विशेष लेख : महाराष्ट्र एवं झारखंड में चुनाव
 

हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में एक आदर्श वाक्य (नारा) बार-बार कहा था–"अगर हम बंटेंगे, तो बाँटने वाले महफ़िलें सजाएँगे।" इसी भाव को आदित्य नाथ योगी इस तरह व्यक्त कर रहे थे कि–"बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे।" इत्तफ़ाक़ से इन्हीं दिनों बांग्लादेश में तख़्तापलट हुआ था और शेख हसीना की उदारवादी सरकार की जगह सत्ता पर जेहादियों और कट्टरपंथियों का कब्ज़ा हो गया था। उसके बाद से कोई ऐसा दिन नहीं हुआ है, जब बांग्लादेश के शांतिप्रिय हिन्दू समुदाय पर हमले, धमकाने, डराने की ख़बर न आती हो। आए दिन मंदिरों में तोड़फोड़ हो रही है, मजलूम औरतों से दुर्व्यवहार हो रहा है। तुष्टीकरण की भयावह नीति पर चलते हमारे विपक्ष के किसी नेता के पास पड़ोस में हो रहे इस अत्याचार और अन्याय के लिए सहानुभूति का एक शब्द भी नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में हरियाणा की बहुसंख्य जनता ने मोदी और योगी के नारों का मर्म समझा और भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत दिला दी। यहाँ तक कि जाट पट्टी में भी भाजपा को कई सीटों पर जीत मिली है, जिस पर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा अपना अधिकार मानते थे।

सच कहा जाए तो हरियाणा में षड़यंत्रकारी ताकतों, वोट बैंक की राजनीति करके देश को पीछे धकेलने वाले विचारों, जाति के नाम पर बहुसंख्यक समुदाय को विभाजित कर सत्ता हासिल करने की ख्वाहिशों, नकारात्मक चुनाव प्रचार और अनहद अहंकार की पराजय हुई थी। उस नैरेटिव की पराजय हुई थी, जो राहुल गांधी और कांग्रेस बड़े ही अहंकार भाव से देश की जनता के बीच ले जा रहे थे। राहुल गांधी अनवरत यह नैरेटिव खड़ा कर रहे थे कि भाजपा संविधान को ख़त्म करना चाहती है, दलितों पिछड़ों का आरक्षण समाप्त करना चाहती है। पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि सकारात्मक राजनीति पर राहुल गांधी और कांग्रेस का भरोसा कम होता जा रहा है। वे लगातार असत्य नैरेटिव लेकर जनता के बीच जा रहे हैं।

संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने का नैरेटिव राहुल गांधी के असत्य भाष्य का सबसे बड़ा उदाहरण है। आम चुनाव में कुछ प्रांतों में दलित और पिछड़ों का एक छोटा सा तबका इस असत्य नैरेटिव में फंस गया था। खासकर उत्तर प्रदेश में इसका ज़्यादा असर हुआ था और भाजपा को अपेक्षाकृत कम सीटें मिलीं।

निश्चय ही आम चुनाव के नतीजे अपेक्षा के अनुकूल नहीं थे और एक बड़े बहुमत की आशा करती भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ा झटका लगा था। राहुल गांधी और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह समझा कि भारतीय जनता पार्टी को रोकने का फार्मूला उनके हाथ लग गया है, मगर हरियाणा के प्रबुद्ध मतदाताओं ने बहुत ही संयम का परिचय देते हुए सही समय पर कांग्रेस के इस भ्रम को तोड़ दिया। हरियाणा की जनता ने सरकार विरोधी भावनाओं (एंटी इनकम्बेंसी) के स्थापित मिथ को भी तोड़ा है। हरियाणा के नतीजे हालिया राजनीति का अहम पड़ाव साबित हुए हैं। इसी संदर्भ में महाराष्ट्र, झारखंड और कई प्रदेशों में हो रहे उपचुनावों के नतीजे भी सदी के तीसरे दशक की राजनीति का बहुत बड़ा पड़ाव साबित होने वाले हैं।

भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मतदाताओं को भावी ख़तरों से आगाह कर रही है। पीएम मोदी ने अपने नारे में थोड़ी सी तब्दीली करते हुए कहा है कि–"एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।" इधर योगी आदित्यनाथ अपने उसी नारे "बंटेंगे तो कटेंगे" पर डटे हुए हैं। राजनीति में अक़्सर इशारों में संवाद होता है। चुनावी मंचों पर भी बहुत सी सच्चाइयों को और बहुत से तथ्यों को संकेतों में कहा जाता है। तब आख़िर एक प्रधानमंत्री और एक बड़े मुख्यमंत्री को साफ-साफ और सीधे चोट करते शब्दों में ऐसा क्यों कहना पड़ रहा है? दरअसल मोदी और योगी सीधे और स्पष्ट शब्दों में देशवासियों के सामने एक बहुत बड़ी सच्चाई बयां कर रहे हैं।

अभी तक हर नेता इस सच्चाई से कतराकर निकल जाता था। इतिहास गवाह है कि जातियों में बंटे देश के बहुसंख्यक समुदाय ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। आज़ादी के बाद उम्मीद थी कि परिस्थितियां बदलेंगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। बहुसंख्यक समुदाय की आस्थाओं और भावनाओं की घोर उपेक्षा करके अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिशों ने देश का भला कतई नहीं किया है।

फ़िलहाल देश और देश का बहुसंख्यक समुदाय बड़े ही नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है। सच कहा जाए तो देश का राजनीतिक माहौल ही संक्रमण काल से गुज़र रहा है। बहुसंख्यक समुदाय अपने भावी अस्त्तित्व और अपनी धार्मिक आस्थाओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, तो विपक्षी पार्टियों ने अपने राजनीतिक फ़ायदों के लिए देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को असुरक्षा में डाल रखा है। विपक्षी पार्टियां यही चाहती हैं कि–बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक–दोनों समुदायों के बीच खाई चौड़ी होती रहे और वे वोटों की फसल काटते रहें। जब बहुसंख्यक समुदाय ने एकत्र होकर राजनीतिक तौर पर इसका प्रतिकार किया, तो बहुसंख्यकों को एक बार फिर जातियों में बांट देने के षड़यंत्र रचे जाने लगे।

इस बार के आम चुनाव के प्रचार में और अब प्रदेशों के चुनाव प्रचारों में निरंतर बढ़ती तल्ख़ी साफ़ देखी जा सकती है। यह तल्ख़ी दोनों समुदायों, ख़ासकर बहुसंख्यक समुदाय, के बीच पैदा हुई असुरक्षा की अभिव्यक्ति ही है। मोदी और योगी के नारे इसी असुरक्षा भाव को ही प्रतिबिंबित करते हैं।

साफ़ नहीं है महाराष्ट्र की चुनावी तस्वीर

वैसे तो महाराष्ट्र की 288 सीटों में सीधा मुकाबला महायुति और महा विकास अघाड़ी के बीच लग रहा है, मगर बहुत सी अन्य पार्टियां भी मैदान में उतरी हुई हैं, तो चुनाव परिणाम का अंदाज़ा लगाना बेहद मुश्किल हो गया है। आम चुनाव में महा विकास अघाड़ी को 48 में से 30 सीटों पर विजय मिली थी, जबकि महायुति को 17 सीटें ही हासिल हुई थीं। इस परिणाम के परिप्रेक्ष्य में आंकलन किया जाए तो महा विकास अघाड़ी का पलड़ा भारी दिखता है। मगर भाजपा के हालिया प्रदर्शनों पर गौर करें तो साफ दिखता है कि भाजपा के अंदर अपनी चुनावी कमजोरियों को समय रहते पहचानने और उसे दूर करने की अद्भुत क्षमता है। इस संदर्भ में कोई आश्चर्य नहीं होगा कि महायुति गठबंधन विधानसभा चुनाव में इन नतीजों को पलट दे।

महायुति गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने 159, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) ने 81 और एनसीपी (अजित पवार) ने 59 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। इधर महा विकास अघाड़ी गठबंधन में कांग्रेस के हिस्से में 101 सीटें आई हैं, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) को 95 सीटें और एनसीपी (शरद पवार) को 86 सीटें मिली हैं। आश्चर्यजनक रूप से इस बार बहुजन समाज पार्टी ने महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा 237 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी के 200 प्रत्याशी मैदान में है। राज ठाकरे की पार्टी मनसे 125
सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हालांकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, पर ओवैसी भाइयों की रैलियों और उनके तल्ख़ भाषणों ने चुनाव में गर्मी पैदा कर दी है।

महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में मोदी और योगी की जोड़ी ने लगातार अपने उन्हीं नारों को दोहराकर बहुसंख्यक समुदाय से एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील की है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भी इसी नक्शेकदम पर ऐसी ही भाषा में बहुसंख्यक समुदाय को एकत्र करने की कोशिश में हैं। जबकि राहुल गांधी अपने उसी पुराने नैरेटिव पर ही टिके हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस के चुनाव प्रचार की शुरुआत आरएसएस के गढ़ नागपुर से की थी। एक बार फिर उन्होंने हाथ में संविधान की किताब लेकर उसी असत्य को दोहराया कि भाजपा और आरएसएस संविधान को ख़त्म करने में लगे हुए हैं और कांग्रेस संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रही है। इस बार उनके भाषणों की तासीर ठंडी थी और उनके अंदर वह आक्रामकता दिखाई नहीं पड़ रही थी, जो हरियाणा में नज़र आ रही थी।

दरअसल इस असत्य नैरेटिव पर डटे रहना राहुल गांधी की विवशता है, भले ही इसकी धार अब कुंद पड़ चुकी है। इंडी गठबंधन की उनकी साथी पार्टियाँ इस नैरेटिव को लेकर कतई मुतमईन नहीं हैं और कोई भी पार्टी इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ा रही है। महाराष्ट्र और झारखंड के वोटरों पर इस नैरेटिव का कोई असर हुआ होगा, इसमें पर्याप्त संदेह है।

राज ठाकरे अपने भाषणों में हार्ड हिंदुत्व की बातें कर रहे हैं। उनकी मंशा यही दिखाई दे रही है कि उन्हें कुछ सीटें हासिल हो जाएं और यदि दोनों गठबंधनों को बहुमत न मिले, तो वे किंगमेकर की भूमिका में आ जाएं। बसपा और प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी भी इसी लक्ष्य को लेकर मैदान में है। बाकी छोटी पार्टियां भी यही चाहती हैं। राज ठाकरे के प्रत्याशी यदि वोट खींचते हैं, तो नुकसान महायुति को हो सकता है। इसी तरह बसपा और प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी दलितों और पिछड़ों के वोट खींचती है, तो यह दोनों गठबंधनों के लिए साझा नुकसान होगा। अब सवाल यह है कि क्या ओवैसी मुसलमानों के थोक वोट हासिल कर पाएँगे?

ओवैसी की पार्टी 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 14 सीटों पर उन्होंने मुस्लिम प्रत्याशियों को खड़ा किया है और तीन सीटों पर दलित प्रत्याशी हैं। ओवैसी बंधु बड़ी ही आक्रामकता से प्रचार कर रहे हैं, पर मुस्लिम वोटर कितनी तादाद में उनकी तरफ जाएंगे, यह तय नहीं है। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि मुस्लिम वोटर संगठित होकर अपने थोक वोट उन प्रत्याशियों को दे रहे हैं, जो भाजपा को हरा सकें। ऐसे में यही लग रहा है कि मुस्लिम मतदाता महा विकास अघाड़ी को ही वोट देंगे।

झारखंड में सीधा मुकाबला

झारखंड में सीधा मुकाबला एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच है। यहां 43 सीटों पर 13 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। बाकी 38 सीटों पर 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। 13 नवंबर की वोटिंग में दोनों पक्ष अपनी अपनी बढ़त का दावा कर रहे हैं। 81 सीटों वाली इस विधानसभा में भाजपा 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सुदेश महतो की पार्टी आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन को 10 सीटें दी गई हैं। नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को 2 सीटें और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 1 सीट मिली है। इधर इंडी गठबंधन में हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को सर्वाधिक 42 सीटों पर मैदान में उतारा गया है। कांग्रेस के हिस्से में 30 सीटें आई हैं, लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी को छह और सीपीआई (एमएल) को तीन सीटें मिली हैं।

झारखंड में इस बार भाजपा ने अवैध घुसपैठियों का मुद्दा जोरशोर से उठाया है। पीएम मोदी साफ-साफ शब्दों में आगाह कर रहे हैं कि म्यांमार से आए रोहिंग्या और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठिए झारखंड के आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं, उनकी रोजी-रोटी छीन रहे हैं। मोदी और अमित शाह आरोप लगा रहे हैं कि इंडी गठबंधन के नेता झारखंड में इन अवैध घुसपैठियों को बसाने और सरकारी योजनाओं का फ़ायदा दिलाने में लगे हुए हैं। मोदी और शाह के इन आरोपों की पुष्टि खुद कांग्रेस के एक नेता ग़ुलाम अहमद मीर ने ही कर दी है। एक जनसभा में मीर ने वादा किया है कि कांग्रेस सत्ता में आई, तो घुसपैठियों को भी 450 रुपयों में गैस सिलेंडर दिया जाएगा। घुसपैठियों के प्रति ऐसे प्यार की सार्वजनिक अभिव्यक्ति इस बात का संकेत है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था किस कदर बिगड़ चुकी है। राहुल गांधी झारखंड में भी संविधान बचाने और अडानी अंबानी का वही पुराना नैरेटिव जगह-जगह दोहरा रहे हैं। झारखंड में इस नैरेटिव का कितना असर होगा, इसका उत्तर 23 नवंबर को मिलेगा।

रायपुर की जनता का अभूतपूर्व प्यार मिला है बृजमोहन को

रायपुर दक्षिण के उपचुनाव में 13 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। इस बार सिर्फ 51 प्रतिशत के लगभग वोटिंग हुई है। 2023 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 60 प्रतिशत से ज़्यादा वोटिंग हुई थी। बृजमोहन अग्रवाल यहाँ से कांग्रेस के महंत रामसुंदर दास को रिकॉर्ड 67919 मतों से हराकर अनवरत आठवीं बार विधायक चुने गए थे। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें रायपुर से मैदान में उतार दिया। 2019 में रायपुर लोकसभा से सुनील सोनी को जीत हासिल हुई थी। लोकसभा में भी बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर की जनता का अभूतपूर्व प्यार मिला। वे कांग्रेस के  विकास उपाध्याय को पौने छह लाख से ज़्यादा वोटों के विशाल अंतर से हराकर चुनाव जीते। इस बार रायपुर दक्षिण से उनकी लीड बढ़कर 89 हजार से भी ज़्यादा की हो गई।

रायपुर दक्षिण बृजमोहन का गृहक्षेत्र है, इसलिए यह तय था कि यहाँ भाजपा का प्रत्याशी उनकी पसंद का ही होगा। उन्होंने सुनील सोनी को यहाँ से मैदान में उतारा और चुनाव का सारा संचालन अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने रायपुर दक्षिण की जनता को सीधा और साफ सन्देश दिया कि इस क्षेत्र से खुद बृजमोहन ही चुनाव लड़ रहा है। स्पष्ट है कि इस सीट पर पूरे छत्तीसगढ़ की निगाहें टिकी हुई हैं और बृजमोहन अग्रवाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस ने यहां से युवा नेता आकाश शर्मा को मैदान में उतारा है। इस क्षेत्र की जनता सहित तकरीबन सभी समीक्षक यहां से सुनील सोनी की जीत तय मान रहे हैं।

यह भी माना जा सकता है कि मतदान का दस प्रतिशत घट जाना इस बात का संकेत हो सकता है कि लोगों को सुनील सोनी की जीत पर कोई संदेह नहीं है। चुनाव परिणाम में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुनील कितने वोटों के अंतर से आकाश को हरा पाते हैं।

 

● नीरज मनजीत

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button